शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

दुखद ...


मैं सूत्रधार ... क्यूँ दुखी हूँ ? हमेशा से यही होता रहा है . ब्‍लॉगर्स को प्रब्‍लेस शिखर सम्‍मान मुबारक हो ! Prize  , जब ऐसी खुशियाँ आती हैं =  प्रब्लेस शिखर सम्मान की उद्घोषणा.....   . मैं किसी व्यक्तिविशेष को दोष नहीं देता , इस मनःस्थिति को हम सब जानते हैं कि बजाये खुश होने के लोग तलवार निकल लेते हैं व्यंग्य बाणों के ! 
अब हम कुछ देर के लिए मान लें कि दिए गए उदाहरण की तरह लिखित नामों ने खुद लिखा , खुद को पुरस्कृत किया ... तो हम क्या साबित कर रहे कि अपनी योग्यता को ये खुद फैला रहे . क्या सच में इन्हें पढ़ने के बाद यह प्रतीत होता है ? सूरज खुद निकलता है , प्रकाश देता है - पुरस्कृत करो न करो, सूरज ही होता है . 
रवीन्द्र जी हों या अविनाश जी या रश्मि जी = इनकी प्रतिभा से कौन इन्कार करेगा ? आलोचना तो ईश्वर की भी होती है = पर सत्य प्रतीक्षा नहीं करता . और यदि सत्य ने खुद को खुद पुरस्कृत किया है तो बाकी लोगों के लिए शर्म की बात है कि वे संकुचित रहे , उनके लिए आगे बढ़कर कुछ नहीं किया !!!

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

जहाँ सब हैं उसमें होकर भी मुक्त होना जीने की कला है ...








मौसम के बदलाव में कुछ अस्वस्थ रहा तो अनुपस्थित रहा . सूत्रधार हूँ = पर इन्सान ही हूँ , तो क्षमा का हकदार भी हूँ . आज मस्तिष्क में एक हलचल सी हुई और कई नाम कई चेहरे मुझे पुकारने लगे - सबसे पहला चेहरा जो बिजली की तरह प्रस्फुटित हुआ उनका नाम है सुमन सिन्हा . रीजेंट थियेटर , आर्ट ऑफ़ लिविंग , परिकल्पना , वटवृक्ष , परिक्रमा काव्य-संग्रह . इनको भी देखा था मैंने सम्मान के मंच पर = इनके ब्लॉग  Main hoon... से आप सब लगभग परिचित होंगे . आपने भी पढ़ा होगा इनका लिखा , = ये जीवन की कला सिखाते हैं ! शिक्षक वही होता है , जिसने सीख लिया हो . सिखाता वही है , जिसने जान लिया हो = पर मैंने विरोधाभास देखा है . कहीं ये आम इन्सान से दिखते हैं , कहीं खुद में उलझे , कहीं ईश कहीं प्रश्न !

इनकी एक रचना आत्म - केन्द्रित   मेरे हर नज़रिए का पुष्टिकरण करेगी . विस्तार में भी संकुचन , सत्य में असत्य . जहाँ सब हैं उसमें होकर भी मुक्त होना जीने की कला है , अन्यथा भटकाव है . 

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

जितना भी समझो , कम ही है !



















समीर लाल जी , चर्चित उड़नतश्तरी ! वो कौन सी जगह है , जहाँ तू नहीं होता = अब तक के सफ़र में समीर जी वह शख्‍़स हैं , जिनके चर्चे हैं भारत से लेकर विदेशों में , पर गर्वोक्ति किसी बात में नहीं

दूरियाँ जो नापी गईं घंटों में : पत्रिका में 'उड़नतश्‍तरी'


मैं बुद्ध हो जाना चाहता हूँ: यशभारत में ‘उड़न तश्तरी’


वाह रे रथयात्री: यश भारत में ‘उड़न तश्तरी’


मि. मल्टी-टास्कर: जनवाणी में ‘उड़न तश्तरी’

वाकई अपनी टोपी तुमको दे दें जैसे विचार हैं इनके . मैंने इनको पढ़ा है , मिला भी हूँ = आशीर्वाद इनका एक छत्रछाया ही है . 'बिखरे मोती ' और ' देख लूँ तो चलूँ ' इनकी महत्वपूर्ण किताबें हैं . जिसने भी पढ़ा - बस दीवाना हो गया . 
शालीनता , हास्य , दर्द , अनुभव = हर शैली इनके पास है . ईमानदारी हर रिश्तों में , सहयोग निष्ठा से = एक व्यक्ति में इतने सारे गुण . हिंदी के उत्थान में इन्होंने पूरा योगदान दिया . नए रचनाकारों को इनका भरपूर प्रोत्साहन मिलता रहा है . संक्षेप में कहूँ तो = जितना भी तुम समझोगे , उतनी होगी हैरानी = हाँ, हाँ दिल है पूरा हिन्दुस्तानी .