सोमवार, 30 जनवरी 2012

आज कोई नहीं - बस मैं ...


आज मैं स्वयं का सूत्रधार हूँ = क्योंकि कुछ प्रश्न हैं . प्रश्न ये कि मैं कौन ! वैसे यह प्रश्न बेमानी है . क्योंकि यहाँ ब्लॉग की जो बिसात बिछी है , वहाँ असली के साथ कई नकली हैं . और एक टिप्पणी की लालसा में कोई नहीं जानना चाहता कि कौन है , नाम असली है या नकली ! मेरा प्रारंभ . मेरा दूसरा कदम न संशयात्मक है , न सत्य पर झूठ का मुलम्मा और झूठ यदि है तो खुलकर कहो मेरी तरह . 
मैं ने परिचय में भी कहा है , संजय कह सकते हो = तो घुमाकर मैंने अपना नाम भी बता ही दिया है . मेरी उम्र मात्र २० . रवीन्द्र जी और रश्मि जी से शुरुआत करने का उद्देश्य ? - मैं भी उसी जगह से हूँ , जहाँ इनका जन्म हुआ , दूसरे - ब्लॉग जगत में इनकी पकड़ स्वार्थरहित है . 
पर मैं सूत्रधार सिर्फ प्रशंसा का नहीं हूँ = ब्लॉग की बिसात पर बेईमानी भी है , और चालाकी भी . मैं अपनी सीमा से जो देख रहा हूँ , उसका आधार बना हूँ . मेरी कोई जाति नहीं , कोई धर्म नहीं = मैं एक भारतीय हूँ , आपके घर का हूँ और गीता को साक्षी माना है = तो जो कहूँगा सच ही कहूँगा , सच को स्वीकारना भी आसान बात नहीं ...  = बाकी आपकी मर्ज़ी ! तो मैं चलूँ न ???

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

पन्‍त की रश्मि ...


















प्रकृति की हरीतिमा, आम के बौर , कोयल की मोहक कूक , पर्वतों की चोटियाँ , कल कल करती नदियाँ , लहलहाती गेंहू की बालियाँ , रंगबिरंगे परिधान में गाँव की गोरियाँ , घाटियों से क्षितिज तक पहुँचने की धुन ............. प्रकृति अपनी अदभुत छटा बिखेरती कहाँ नहीं ! तभी तो एक चिर परिचित प्रेमी का जन्म हुआ - जी हाँ प्रकृति कवि सुमित्रानंदन पन्त ! उदित होते सूर्य , उसकी रश्मियों के मध्य चिड़ियों की चहचहाहट = और कवि का विस्मित प्रश्न -
" प्रथम रश्मि का आना रंगिनी तूने कैसे पहचाना ' . प्रथम रश्मि का आना कवि को जगाता गया , और प्रकृति के प्रेम सौन्दर्य में लिपटे कवि ने एक नन्हीं सी लड़की को एक नाम  दिया - ' रश्मि ' ! नाम दिया या अपने ख्यालों की वसीयत उसके नाम कर दी , इस बात से अनभिज्ञ वह लड़की अपने ख़्वाबों की लम्बी उड़ान के साथ ' पन्त की रश्मि ' बन गई . 
कहती है वह रश्मि - ' सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया ....' मैं सूत्रधार निरंतर उनकी उड़ान देख खुद को सौभाग्यशाली मान रहा हूँ . वह सूर्य की पहली रश्मि है या चिड़िया = मैं आज तक तय नहीं कर पाया . 
जिस तरह शिव के धनुष पर बड़ी सहजता से राम ने प्रत्यंचा चढ़ाई थी , ठीक उसी प्रकार - इस पार और उस पार के रहस्य को जान लेने की हठ में वह शब्दों के धनुष पर भावों की प्रत्यंचा चढ़ा नित नए सवाल और जवाब देती है . सूरज के रथ में अपनी दुआओं के साथ वह अकेले नहीं निकलती = क्षितिज  भ्रम है, इसे वह मानती नहीं और उसे अकेले पा लेना उनकी ख्वाहिश नहीं . तभी तो अलग अलग माध्यम से वह रास्तों से नगीने उठाती हैं . अपना ब्लॉग उनका मन है - मेरी भावनायें परन्तु , वटवृक्ष , परिकल्पना ब्लोगोत्सव के समय के रूप में , ब्लॉग बुलेटिन, शख्‍़स मेरी कलम से तथा एक सकारात्मक परिचर्चा के माध्यम से रश्मि प्रभा जी ने कईयों को नाविक बनाया अपने साथ - देखकर स्वतः सब कहते हैं = ' किनारे को पाने से कौन रोक सकता है !' 
शख्‍़स मेरी कलम से  में लोगों के अनुरोध पर खुद को भी अपनी कलम में उतारा , आप सब पढ़िए उन्‍हें यहां तब तक ............. मैं सूत्रधार अगले सूत्र तक बढ़ता हूँ 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

वक़्त इनका कायल है !


















परिकल्पना महोत्सव का विस्तृत मैदान और लक्ष्य-भेद करता एक जबरदस्त धनुर्धर ! कलम और दिमाग की पैनी धार , दूरदृष्टि , विलक्षण समझ = ब्लॉग तो जाने कितने लोगों ने बनाया , कितने लोगों ने टिप्पणी की फरमाइश में साल गुजार दिए . इस चाह से परे एक ब्लौगर रवीन्द्र प्रभात ने सारे ब्लोग्स की सूक्ष्म विवेचना की . एक समीक्षा लिखने में लोग त्रस्त हो जाते हैं , पर इस महान व्यक्ति ने सात घोड़ों के रथ पर सवार हो दसों दिशाओं की परिक्रमा की है .
'सारस्वत-सम्मान' देकर इन्होंने साहित्य की अवरोधित छवि को मुखर किया . मैं शुरू से अंत तक रवीन्द्र जी की अदभुत अलौकिक छवि को ही देखता रहा . आलोचकों ने तो वहीँ से कमर कस लिया था और मैं उनकी कासी हुई कमर पर हँस रहा था - आसान होता है समापन पर ऊँगली उठाना , पर कदम उठाकर कुछ साबित तो करो . सतयुग से आज तक आलोचना होती रही है , पर साथ ही साथ सार्थक साथ भी बना है .   
सहज व्यक्तित्व , मृदु भाषी और कुशल अव्लोकनकर्ता ! आलोचनाओं की अग्नि में जलकर सोना बनते मैंने देखा है . लोग समझने में जितनी भी देर करें , परन्तु वक़्त इनका कायल है !  शिकायत करने से ना चूकना व्यक्ति की फितरत है , कोई चयन पर ऊँगली उठाता है , कोई भेदभाव का आरोप लगाता है = पर एक बार भी शांत मन से यह नहीं सोच पाता कि ब्लोगोत्सव में सबको समान मौका मिलता है . खुला मंच , फिर भी मनुहार का इंतज़ार . 
परिकल्पना ,वटवृक्ष , शब्द-शब्द अनमोल , साहित्यांजलि  इत्यादि इनके नगीने हैं . नागमणि की तरह रवीन्द्र प्रभात का दिमाग बहुत ही अनमोल है . कई लोग उसे पाने की ख्वाहिश रखते हैं , पर = यह तो अपनी मिलकियत है . इनका पूरा परिवार इनकी इस यात्रा में शामिल है . 
आप http://www.blogger.com/profile/11471859655099784046 से हर दिशा में जा सकते हैं और इनकी उपलब्धियों पर गौर कर सकते हैं . जो शक्स सहस्त्रों ब्लोगों को एकत्रित कर सकता है , उस पर इतना वक़्त तो आप सब दे ही सकते हैं .