मैं सूत्रधार ... क्यूँ दुखी हूँ ? हमेशा से यही होता रहा है . ब्लॉगर्स को प्रब्लेस शिखर सम्मान मुबारक हो ! Prize , जब ऐसी खुशियाँ आती हैं = प्रब्लेस शिखर सम्मान की उद्घोषणा..... . मैं किसी व्यक्तिविशेष को दोष नहीं देता , इस मनःस्थिति को हम सब जानते हैं कि बजाये खुश होने के लोग तलवार निकल लेते हैं व्यंग्य बाणों के !
अब हम कुछ देर के लिए मान लें कि दिए गए उदाहरण की तरह लिखित नामों ने खुद लिखा , खुद को पुरस्कृत किया ... तो हम क्या साबित कर रहे कि अपनी योग्यता को ये खुद फैला रहे . क्या सच में इन्हें पढ़ने के बाद यह प्रतीत होता है ? सूरज खुद निकलता है , प्रकाश देता है - पुरस्कृत करो न करो, सूरज ही होता है .
रवीन्द्र जी हों या अविनाश जी या रश्मि जी = इनकी प्रतिभा से कौन इन्कार करेगा ? आलोचना तो ईश्वर की भी होती है = पर सत्य प्रतीक्षा नहीं करता . और यदि सत्य ने खुद को खुद पुरस्कृत किया है तो बाकी लोगों के लिए शर्म की बात है कि वे संकुचित रहे , उनके लिए आगे बढ़कर कुछ नहीं किया !!!